कुचले हुए जज़्बात
इतने ज़्यादा संगीन हैं
इस मुल्क के हालात कि बस!
चीख-चीख कर कहती है
ज़ुल्मत की ये रात कि बस!!
हुक्मरानों के बूटों तले
एक-एक करके बेदर्दी से!
ऐसे कुचले जा रहे हैं
अवाम के जज़्बात कि बस!
Shekhar Chandra Mitra
#अवामीशायरी #जनवादीकविता
#इंकलाबीशायरी #धर्मनिरपेक्षभारत