कुकृत्य
“कुकृत्य”
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चौराहों से
उठाते हैं……….
कभी रस्ते चलते
उठाते है !
हद कर जाते
वहशी-दरिंदे
जब बच्ची को घर से
उठाते हैं !!
काम-वासना
अपनी जगाकर
मंदिर-मस्जिद से
उठाते हैं !
कभी- कभी
निर्मम हत्यारे………
आँचल से ही
उठाते हैं !!
कभी ले जाते
दूधमुँही बच्ची !
कभी किशोरी
उठाते हैं !!
हैं ये भेड़िये
मांसाहारी !
मांस नोचकर खाते हैं !
कभी मांँ सम्मुख
नारी तो……..
कभी दादी को
उठाते हैं !!
ऐसे कुकृत्य करके भी
खुद को निर्दोष
बनाते हैं !
माफी नहीं है
“दीप” उन्हें !
जो नारी को
उठाते हैं !!!
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डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”