कुकुभ छंद
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कुकुभ छंद
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दौलत बिखरी पड़ी जगत में, अपनी झोली भर लेना ।
जानबूझ कर कभी किसी को, नहीं भूलकर दुख देना ।।
नेक कर्म जो करते जग में, वे जन अच्छी गति पाते ।
सत्कर्मों के चुंबक से खिंच, धन, यश, वैभव ,गुण आते ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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