कुकुभ छंद
[01/09/2020] कुकुभ छंद, (16-14)
प्रथम प्रयास, पदांत- 22
राम नाम रटते -रटते हम,
अपने सभी पाप धोले ।
कल क्या हो जाये जीवन में,
सबसे प्रेमभाव बोले ।।
जो मानुष धरती पर आकर,
हरि नाम नहीं जपते हैं ।
सच यह है अंत समय में वो,
पाप भोगते रहते हैं ।।
***
अपने मन का परिशोधन कर
क्यों अत्याचारी बनता है ।
अपने ही करमों से अपना,
पाप घड़ा तू भरता है ।।
प्रभु जी तेरी दुनियां में क्या,
रही नहीं है अब माया ।
झूंठ फरेबी लोगो से जब,
इतना अंधकार छाया ।।
अभिनव मिश्रा