*कुकर्मी पुजारी*
एक पुरानी दास्ता है, एक लड़का था लालू।
बहन श्यामा पिता कल्लू और भाई था डल्लू।
सब परिवार मिलकर करता, पब्लिक सफाई।
गरीबी और छुआछूत में, करते भी क्या भाई।।१।।
लल्लू आज्ञा मान पिता की, करता लैट्रिन साफ।
सुबह को जल्दी उठकर, शाम को देर से आता आप।
मलिन गंदी बस्ती थी वह, जहां रहता था लल्लू।
नाई धोबी भिश्ती रहते, और रहते थे ठल्लू।।२।।
रोज सुनता पिता की गाली, और अमीरों की फटकार।
एक था पुजारी कालीनाथ, दिखावा सा करता व्यवहार।
पुजारी ने एक दिन, सुंदरी श्यामा को कुएं पर देखा।
अभिभूत हुआ देख श्यामा को, कुविचार की उभरी रेखा।।३।।
पुजारी ने श्यामा को, मंदिर की सफाई हेतु बुलाया।
इस बहाने कुकर्म करने का, उसने मन बनाया।
जब घर आयी श्यामा, सब कुछ लल्लू से फरमाया।
दुराचारी है पुजारी वो, जो मंदिर में आया।।४।।
क्रोध के मारे लल्लू की, आंखें हो गई लाल।
जी में आया करूंगा,इस पुजारी का बुरा हाल।
हैसियत नहीं हमारी बेटा, पिता ने सब समझाया।
वो अमीर है हम गरीब, मामला खत्म कराया।।५।।
सोचता है क्या जीना है, ऐसा भी क्या जीना?
आग लगी है दिल में मेरे, किसे दिखाऊं सीना।
क्या करें वह गरीब था, और उसका परिवार।
पर उसकी इच्छा ऊंची थी, और ऊंचे थे विचार।।६।।
था वह छुआछूत का, प्रबल कट्टर विरोधी।
कोई करता छुआछूत की बात, तो हो जाता क्रोधी।
सोचता रहता हर समय, कब अच्छे दिन आएंगे।
कब होंगे सामान हम, कब बराबर कहलाएंगे।।७।।
कोई ऊंचा न कोई नीचा, क्यों करते ऐसा व्यवहार?
उसने ही हर एक बनाया, उसने ही सारा संसार।
सब सामान इंसान हैं, लाओ न मन में नीच विचार।
संविधान बनकर बाबा साहब ने, किया है सब पर बड़ा उपकार।।८।।
ऊंच नीच का भेद छोड़ दो, सब सामान इंसान हैं।
कोई बड़ा ना कोई छोटा, सब कुछ दिन के मेहमान हैं।
इज्जत सबके इज्जत होती, दुष्यन्त कुमार का सार है।
पढ़ लिखकर भी ऐसा करते, तो जीवन ये अधिकार है।।९।।