कुंदन, आमंत्रण, कलश, सरोद, भैरवी
कुंदन
स्वर्ण मुखी शुभ यौवना, मधुरिम अधर रसाल।
कुंदन देह निहार कर, नयन हुए वाचाल।।
आमंत्रण
नयन नयन को दे रहे, आमंत्रण मधुमास।
तप्त हृदय पुलकित हुआ, सोच मिलन की आस।।
कलश
स्वर्ण कलश मदिरा भरे , इठलाते निज रूप।
गुण-अवगुण नहीं देखते, ठुकराते नित भूप।।
सरोद
हरियाली चहुँ दिश दिखे, छाया आज प्रमोद।
सुरभित मन गाने लगा, धड़कन हुईं सरोद।
भैरवी
राग भैरवी छेड़कर, रास रचे चितचोर।
वेणु की सुन तान मधुर, नाच रहा मन-मोर।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)