कुंडलिया
कुंडलिया
पीतल को सोना कहें, कोयल को अब काग ।
सच को छलनी कर गए, अब झूठे अनुराग ।
अब झूठे अनुराग, बड़ा है गड़बड़ झाला ।
देखो कैसे झूठ , सत्य की जपता माला ।
कैसे करें यकीन , आग कब लगती शीतल ।
ऐंठा- ऐंठा स्वर्ण, भला अब लगता पीतल ।
सुशील सरना / 13-10-24