कुंडलिया
कुंडलिया
होना भी तो चाहिए, मन में सच्ची प्रीत।
दौड़े आयेंगे सखी, जो राधे के मीत।
जो राधे के मीत, सभी को लगते प्यारे।
नटवर नागर देख, लगें सबको ही न्यारे।
वह लीला के धाम, नहीं अवसर तुम खोना।
निष्ठा के तुम साथ, एकरस प्रभु से होना।।
डाॅ. सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली