कुंडलिया
कुंडलिया
मानव तन में भेड़िए, घूम रहे हैं आज।
इनको ही राक्षस कहें, समझो इनका राज।
समझो इनका राज, दण्ड हो इनको भारी।
फांसी पर दो टांग, सभ्यता इनसे हारी।
करे घिनौना काम, इन्हें कहते हैं दानव।
ऐसे जालिम लोग, नहीं कहलाते मानव।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली