कुंडलिया
कुंडलिया
काका करे गुलाल से, नाच-नाच हुड़दंग ।
काकी के बौछार में, भीगे सारे अंग ।
भीगे सारे अंग , साथ में भीगी चोली ।
छोड़ -छाड़ के लाज , लिपट कर खेली होली ।
कह ‘ सरना ‘ कविराय, लगाया खूब ठहाका ।
पी कर थोड़ी भंग , नशे में नाचे काका ।
सुशील सरना / 21-3-24