कुंडलिया
कुंडलिया
काया की माया मिटी, मिटे देह अनुबंध ।
सूक्ष्म अकेला ही चला ,तोड़ धरा सम्बंध ।
तोड़ धरा सम्बंध , छोड़ यादों की पाती ।
हर साथी को याद , तेरे करम की आती ।
कह ‘सरना’ कविराय, अजब उस रब की माया ।
माटी में हुई लीन, आज माटी की काया ।
सुशील सरना1-2-24