कुंडलिया
करना है ‘जल संचयन’
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करना है ‘जल संचयन’, जल है ‘दूध अमूल’
‘रहिमन पानी राखिये’, ‘बात’ न जान भूल
बात न जाना भूल, गाँठ यह बाँधें मन में
शंका की हो जगह, नहीं हर वृदांवन में
‘सहयोगी’ की सोच, नहीं बिन पानी मरना
जल है ‘दूध अमूल’, संचयन जल का करना
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ