“कुंडलिया”
“कुंडलिया”
बैठी क्यों उदास सखी घिरी खुद के बिस्तर।
सौंप हाथ को तूलिका ताक रही है ब-ख्तर।
ताक रही हैं ब-ख्तर किससे तेरी लड़ाई।
क्यूँ भागे तू दूर परस्पर प्रीत लगाई।
यह ‘गौतम’ अंजान नहीं मन मूरत पैठी।
तस्वीरें नादान कहाँ से आकर बैठी॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी