कुंडलिया छंद
सारे रखना चाहते, अपनी ऊँची नाक।
तार-तार इंसानियत ,बात यही बेबाक।।
बात यही बेबाक,शुरू जब हुई लड़ाई।
खुशियाँ चढ़तीं भेंट,नहीं होती भरपाई।
होती सबकी हानि ,मरे या कोई मारे।
कहता है इतिहास,सत्य ये सुन लो सारे।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय