*कुंडलिया छंद*
कुंडलिया छंद
पागल दस के सामने, बुद्धिमान का मौन।
गर्मी में ठंडक भरे, ज्यों पंखे की पौन।।
ज्यों पंखे की पौन, मूर्ख समझें न फ़साना।
बहरों को हित गीत, भूलकर भी न सुनाना।।
सुन ‘प्रीतम’ की बात, लगे पग में शुभ पायल।
गले पहनना छोड़, कहेंगे सारे पागल।।
आर.एस.’प्रीतम’