कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद…
पावन हो गर भावना, दिखे सभी सुचि रूप ।
यद्यपि मिलते हैं बहुत, होते हीन कुरूप ।।
होते हीन कुरूप, हमेशा मिलता ताना ।
इनका भाग्य खराब, खोजते दर-दर खाना ।।
सज्जन कहता नाथ, सभी घर बरसे सावन ।
मैल हृदय से दूर, सभी का मन हो पावन ।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही.