कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद-
कौआ बोला व्यर्थ में ,मैं जग में बदनाम।
वाणी कर्कश या मधुर,देना प्रभु का काम।
देना प्रभु का काम ,रंग, पद, पैसा, काया।
ये छोटा सा तथ्य,किसी को समझ न आया।
सब दें मुझको दोष , कहें पी बैठा पौआ।
कहता सच्ची बात,भले हूँ काला कौआ।।1
वाणी ही मरहम बने ,वाणी करती घाव।
रिश्तों में कटुता बढ़े ,मिट जाता सद्भाव।
मिट जाता सद्भाव ,दूरियाँ दिल में आएँ।
मीठे सुंदर शब्द, गैर को स्वजन बनाएँ।
कहते हैं सब लोग ,गिरा होती कल्याणी।
डाले अमिट प्रभाव,सभी के दिल पर वाणी।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय