कुंडलिया छंद
शहरों की बस चमक में, भुला दिये हैं गाँव।
लेकिन शहरों में कहाँ, पीपल की वह छाँव।
पीपल की वह छाँव, दे सदा शीतल छाया।
हर्ष रहे अतिरेक, रहे अरु निर्मल काया।
कहे सचिन कविराय, हुई हालत बहरों की।
ठगे गये हम आज, चमक में बस शहरो की।
बचपन बीता गाँव में, था अपनों का साथ।
सर पे छत आशीष का, माँ बापू का हाथ।
माँ बापू का हाथ, नेह से भरी थी झोली।
सुखमय सदव्यवहार,सभी की मधुरिम बोली।
कहे सचिन कविराय, उमर हो चाहे पचपन।
आयेगा पर याद, गाँव में बीता बचपन।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’