$$ कुंडलिया छंद $$
दो कुंडलियाँ / दिनेश एल० “जैहिंद”
(१)
धर्म पाखंड छोड़ दे, ……कर इंसानी कर्म |
कर्म से नसीब सँवरे, ….. यही ईश्वरी मर्म ||
यही ईश्वरी मर्म, ……जान ले तू अब प्यारे |
कर मानवीय धर्म, ….जिंदगी यही सँवारे ||
जीवन भर कर काज, यही एक तेरा फर्ज |
पाप-पुण्य त्याग दे, कर काज तू यही धर्म ||
(२)
एक भू एक आसमाँ, ….एकहिं है इंसान |
एक तन एक रक्त है, एकहिं सबमें प्रान ||
एकहिं सबमें प्रान, कहते हैं सभी ग्यानी |
पंडित-साधु-फकीर, बात ये सबने मानी ||
कहता कवि जैहिंद, एक ईश रूप अनेक |
गीता कहे कुरान, सब मानव मानव एक ||
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दिनेश एल० “जैहिंद”
02. 01. 2019