कुंडलिया छंद विधान ( कुंडलिया छंद में ही )
कुंडलिया छंद विधान ( कुंडलिया छंद में ही )
रोला; दोहा में जुड़े , कुंडलिया तब रंग |
दोहा का चौथा चरण, रोला प्रथमा अंग ||
रोला प्रथमा अंग , तीन दो चौकल चौकल |
( 3244 या 3424,)
विषम चरण यति गाल , रखें रोला में प्रतिपल ||
दोहा प्रथमा शब्द , अंत में लेता चोला |
है कुंडलिया रूप , जहाँ क्रम दोहा रोला ||
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होती चौकल से जहाँ , कुंडलिया प्रारंभ |
आगे जब रोला जुड़े , बना रहे तब दंभ ||
बना रहे तब दंभ , निवेदन समझो प्यारे |
चौकल करे पदांत , नियम से रोला सारे ||
जहाँ त्रिकल प्रारंभ, वहाँ लय मिलती रोती |
इसीलिए प्रारंभ, सही गति चौकल होती ||
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षटकल अठकल से करो , कुंडलिया की आदि |
चरण उठा पूरा रखो , नहीं यहाँ तब व्याधि ||
नहीं यहाँ तब व्याधि , किंतु जब रोला आए |
चले नियम से चाल , अंत में चौकल लाए ||
हर मुश्किल आसान , जहाँ से दोहा हलचल |
रखना चौकल मान , बने जो षटकल अठकल ||
“दीवाली” षटकल गिनो , पर चौकल का भान |
“रहे हमेशा” आठ है , यह समझों संज्ञान ||
यह समझों संज्ञान , अंत में चौकल बनता |
कुंडलिया लय जान , सही तब रोला रहता ||
समझों सही विधान, छंद की यह उजयाली |
लेखन करना श्रेष्ठ , लगे जब शुभ दीवाली ||
सुभाष सिंघई , जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०