*कुंडलिया कुसुम: वास्तव में एक राष्ट्रीय साझा कुंडलिया संकलन
कुंडलिया कुसुम: वास्तव में एक राष्ट्रीय साझा कुंडलिया संकलन
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कुंडलिया कुसुम नाम से डॉक्टर सतीश चंद्र शर्मा सुधांशु निवासी बाबू कुटीर, ब्रह्मपुरी, पिंडारा रोड, बिसौली, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश के प्रधान संपादककत्व में कुंडलिया संकलन अगस्त 2023 में प्रकाशित हुआ है। सुधांशु जी ने इसे राष्ट्रीय साझा कुंडलिया संकलन का नाम दिया है। सचमुच शायद ही कोई राष्ट्रीय ख्याति का धनी कुंडलियाकार ऐसा बचा हो, जिसकी कुंडलियों से यह कुंडलिया कुसुम सुरभित न हो रहा हो । प्रधान संपादक महोदय के अतिरिक्त संपादक डॉक्टर शेख रजिया शहनाज शेख अब्दुल्ला जी भी बधाई की पात्र हैं।
छपाई अच्छी और आकर्षक है। इसका श्रेय प्रकाशक, आस्था प्रकाशन गृह 89 न्यू राजा गार्डन, मिठ्ठापुर रोड, जालंधर, पंजाब को जाता है। पुस्तक का मूल्य 255 रुपए है, जो महंगाई की दृष्टि से अधिक नहीं कहा जाएगा।
एक से बढ़कर एक नाम इस संकलन में देखे जा सकते हैं। अनेक कुंडलियाकारों से मेरा समय-समय पर कम या ज्यादा साहित्यिक संपर्क भी रहा है।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी ने काफी समय पहले मुझे फोन करके कई कुंडलियां मांगी थीं। मैंने उन्हें भेजी भी थीं ।आपका न केवल कुंडलिया लेखन में शीर्ष स्थान है, अपितु वर्तमान संकलन में आपकी कुंडलियां भी हैं और कुंडलिया संकलन पर संक्षिप्त भूमिका भी है।
इसके अतिरिक्त सर्वश्री शिवकुमार चंदन और श्री कृष्ण शुक्ल जी से तो बहुत अच्छा घनिष्ठ परिचय है। शिवकुमार चंदन जी ने अनेक बार कुंडलियां टैगोर काव्य गोष्ठी में भी सुनाई हैं। श्री कृष्ण शुक्ल जी तो हमारी पुस्तक के विमोचन में कृपा करके मुरादाबाद से रामपुर भी पधारे हैं। डॉ रामसनेही लाल शर्मा यायावर जी और विजय बागरी विजय जी से मैं राष्ट्रीय तूलिका मंच, एटा के माध्यम से पहले से परिचित रहा हूं। गाफिल स्वामी जी पल्लव काव्य मंच में प्रकाशित कुंडलियों की समीक्षा लंबे समय से कर रहे हैं। आप कुंडलिया विशेषज्ञ हैं। दीपक गोस्वामी चिराग जी से भी साहित्यिक संपर्क आया है। आपने अपनी पुस्तक ‘बाल रामायण’ मुझे भेजी थी और मैंने उसकी समीक्षा भी लिखी थी।
परिचित और अपरिचित सभी कुंडलियाकारों की कुंडलियां पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।
प्रस्तुत संकलन इस बात का प्रमाण है कि काव्य की एक लोकप्रिय विधा के रूप में कविगण कुंडलिया का भरपूर रूप से उपयोग कर रहे हैं। सब प्रकार से अपने मनोभावों को व्यक्त करने में कुंडलिया अद्भुत रूप से सक्षम विधा है। इसमें सृष्टि के शाश्वत काल-प्रवाह के साथ-साथ समसामयिक घटनाओं पर भी टिप्पणियां अच्छे प्रवाह के साथ की जा सकती हैं । इन सब के चित्र संकलन में यत्र-तत्र अपनी सुरभि बिखेर रहे हैं।
मैं सुधांशु जी का व्यक्तिगत रूप से इस बात के लिए आभारी हूं कि उन्होंने मुझे संकलन में शामिल किया तथा इस बात के लिए तो और भी ज्यादा कृतज्ञ हूं कि उन्होंने 39 कुंडलियाकारों में मेरी रचनाओं को अनुक्रम में प्रथम स्थान देकर विशेष आकर्षण प्रदान किया है।
साझा संकलनों में अपनी कुंडलियां भेजने के पीछे मेरा उद्देश्य यही रहता है कि अधिक से अधिक लोगों तक हमारी रचनाएं पहुंचे तथा उनका ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार हो। अतः मेरी किसी भी कुंडलिया को, चाहे वह कहीं भी प्रकाशित हुई हो; कोई भी व्यक्ति कहीं भी प्रकाशित कर सकता है। मेरी ओर से उसे पूरी स्वीकृति है ।
संकलन में प्रकाशित मेरी एक हास्य कुंडलिया प्रस्तुत है:-
चखते रसगुल्ला रहें, गरम जलेबी रोज ।
हलवा लड्डू नुकतियाँ, मिष्ठान्नों के भोज ।।
मिष्ठान्नों के भोज, खीर का भोग लगाएँ।
मालपुए है चाह, काश ! प्रतिदिन मिल जाएँ।
कहते ‘रवि’ कविराय, यही इच्छा बस रखते ।
आए अंतिम साँस, इमरती चखते- चखते ।।
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समीक्षक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451