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5 Jun 2022 · 1 min read

कुंडलिया

कहती जाती अनवरत,जटिल समय की धार-
“तिरता है प्रतिकूल जो ,वही उतरता पार।
वही उतरता पार, धैर्य ना जिसका टूटा।
रही फूलती श्वांस ,किन्तु साहस ना छूटा।
जिसकी प्रेरक कथा, विश्व मानस में रहती-
पाता वह गंतव्य!” -समय की धारा कहती।

(स्वरचित एवं मौलिक)
©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’

1 Like · 2 Comments · 137 Views
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