कुंडलिया
कहती जाती अनवरत,जटिल समय की धार-
“तिरता है प्रतिकूल जो ,वही उतरता पार।
वही उतरता पार, धैर्य ना जिसका टूटा।
रही फूलती श्वांस ,किन्तु साहस ना छूटा।
जिसकी प्रेरक कथा, विश्व मानस में रहती-
पाता वह गंतव्य!” -समय की धारा कहती।
(स्वरचित एवं मौलिक)
©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’