कुंडलियां
कुंडलियां
लाली रवि की है कहे,सुबह सवेरे आन।
हुआ उजाला तम मिटा, करते सब प्रभु गान।।
करते सब प्रभु गान,प्रीत है गहरी लगती।
भोर सुहानी रोज,आस की गाथा कहती।।
सीमा मीठे गीत, कहे है कोयल काली।
सपनों में नवरंग,भरे है रवि की लाली।।
विभोर तन मन कर गयी , पंछी बोलें डाल।
पवन रवानी में बहे, जैसे देती ताल।।
जैसे देती ताल,मधुर सा गायन बजता।
हर्षित होता गात, हृदय को पुलकित करता।
सीमा पावन भाव,सुबह का मन ले हिलोर।
देते ईश्वर दर्श,प्रेम से आत्मा विभोर ।।
सीमा शर्मा