कुंडलियाँ
कुंडलियाँ
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जग में कबीर पूछता,
भीड़ कहाँ से होय।
ऐसी रेलम पेल है,
जन-जन नित ही रोय।।
जन-जन नित ही रोय,
बढ़ी है जो आबादी।
करो नियंत्रण यार,
नही तो है बर्बादी।।
कह डिजेन्द्र करजोरि,
प्रेम हो अब रग-रग में।
रखो देश की लाज,
मान हो अपना जग में।।
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डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”