कुंडलियाँ
मँहगाई की मार से,
उधड़ गई है खाल।
फिर बतलाओ किस तरह,
मने पर्व इस साल।।
मने पर्व इस साल,
दीवाली दीवाला।
कर्ज़ माँगता रोज,
न माने रौशन लाला।।
कह प्रीतम कविराय,
किल्लत पाई-पाई की।
कब तक झेले मार,
मनुज मँहगाई की।।
प्रीतम श्रावस्तवी