कुंडलिनी
कुंडलिनी
अमृत धारा कुंड में,करे मनुज नित स्नान।
अभ्यंतर निष्पक्ष हो,नैतिकता का मान।
कहें मिश्र कविराय,मानव का मतलब सतकृत।
अमर उसे ही जान,भाव हो जिसका अमृत।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
कुंडलिनी
अमृत धारा कुंड में,करे मनुज नित स्नान।
अभ्यंतर निष्पक्ष हो,नैतिकता का मान।
कहें मिश्र कविराय,मानव का मतलब सतकृत।
अमर उसे ही जान,भाव हो जिसका अमृत।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।