कुँवारे की व्यथा ( अवतार छंद)
अवतार छंद
कुँवारे की व्यथा
(हास्य व्यंग्य )
××××××××÷×××÷×
होती नहीं कभी सही,
जो बात बोलते-
हर दिन कहीं ढके किसी,
के राज खोलते ।
अपने लिए सदा जिये ,
बेकार जिंदगी,
अब तो पचास के हुए ,
श्रीमान बोलते।
बहुमत तलाशते रहे,
कुछ कर नहीं मिला।
सोने सुकून से कभी,
बिस्तर नहीं मिला।
काटी तमाम उम्र ही,
रडुआ बने हुए,
दाढ़ी बढाय से कभी,
भी घर नहीं मिला।
कटती चली गरीब सी,
कल की तलाश में।
अब भी लगी बिना रुके,
सुख के प्रयास में ।
आशीष मां मिले मुझे,
लाऊँ बहू तुझे,
मैं जी रहा कसम लिये
आकंठ ,आस में ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
17/7/23
विधान ÷ अवतार 23 मात्राएँ
मापनी युक्त। 13/10 पर यति
221,212,12 / 221,212