कीमत इंसान की
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किस तरह से घट रही कीमतें इंसान की,
घट गई है अब यहाँ ईज्जतें कद्रदान की।
भाईचारा खत्म हुआ अंत हुआ प्यार का,
नफ़रतों के प्रवेश से न सुनते दीवान की।
कलेजा कांप उठे मानव दानव बन बैठा,
दानवता के असर से मानते बेईमान की।
बेवकूफियों के दौर में सूझ बूझनहीं रही,
मिल के सभी साख गिराते सूझवान की।
जैसा राजा वैसी प्रजा हो गई प्रदेश की,
हो गई नीलाम ये रियासतें सुल्तान की।
हैवानियत ने इंसानियत का स्तर गिराया,
दांव में लगा दी सारी विरासतें ईमान की।
मनसीरत आदमीयत को कैसे बचाएगा,
कलयुग में कोई नहीं मानते भगवान की।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)