अनाज की कीमत
गुमसुद बैठा
हल कौने में
बैल आज क्यूँ
मायूस खड़ा
क्या हो गया अपने
किसान को
शहरी धूल में
क्यूँ खुद को रगड़ रहा.?
ये शहरी लोग
खा पीकर डकार मारते
नही जानते पीड़ा
किसान की
अंग्रेजी में बक देते
हो गयी दुगुनी कमाई
किसान की..?
धुप में बेहोश हो जाते
जूते बगैर इनके पैर घिसजाते
नही जानते मेहनत
किसान की
बैठ ऐसी में नियम बनाते
क्या मालूम इनको
समस्या किसान की…?
इनसे क्या उम्मीद करें
झूठी घोषणा नेता करें
धरती पुत्र खुद को कहते
सफेद कुर्ते पर
मिट्टी का दाग नही सहते ।
ये शहरी बाबू
नही समझते
कीमत किसान की
हर तौल पर
हाथ रगड़ते
भूल जाते ये औकात
शहर की ।
गर्मी-शर्दी
औला-अति वृष्टि
नही जानते
ये किस्मत किसान की
बर्बाद करते जश्न
में भोजन
नही समझते
कीमत अनाज की ।