किस राह चलूँ
किस राह चलूँ?
क्या भूलूँ और मैं क्या याद करूँ
किसको छोड़ूं,किसके साथ चलूँ?
कौन अपना ,कौन पराया है यहां
किसकी मानूँ किसपे एतबार करूँ?
खबरों की भी सही खबर नही यहाँ
कौन है सच, कौन सा अखबार पढूँ?
जैसे सब बन जाते इंटलेक्यूएल यहाँ
अपने ही धर्म पे क्या मैं प्रहार करूँ?
रोज तो टूट रही है सब मर्यादा यहां
कौन सी मर्यादा का पालनहार बनूँ।
नेता,अफसर,पुलिस व पत्रकार यहाँ
कोर्ट-कचहरी, संसद सब बेकार यहाँ
औरत की इज्जत रोज तार तार यहाँ
गुंडे मवाली की अब तो सरकार यहाँ।
किसे मानूँ और किसे मैं इनकार करूँ?
किस राह को छोड़ूं और किस राह चलूँ?
©पंकज प्रियम
20.4.2018