किस बात तुम्हें अभिमान है प्राणी!
किस बात का तुम्हें इतना
गुमान है ऐ प्राणी।
जब तेरे हाथ में नहीं है
तेरे जीवन का कमान प्राणी।
मत भूलो तुम यहाँ पर हो
कुछ दिनों का मेहमान प्राणी।
जिस धन-दौलत के लिए तुम
भागते रहते हो सुबह-शाम,
मत भूलो यहीं छोड़कर जाना है
तुम्हें सारा सामान प्राणी।
फिर किस बात का है तुम्हें
इतना अभिमान प्राणी।
क्यों दिन-रात लूट-खसोट कर
तुम सबको करते रहते हो परेशान प्राणी,
क्यों लड़ाई -झगड़ों में तुम अपना
यह अनमोल समय गवाते हो प्राणी।
क्यो जात-पात,मजहब -धर्म के नाम,
एक-दूसरे को करते हो अपमान प्राणी।
जब जाओगे यहाँ से, खाली तुम्हें जाना है।
इस मिट्टी के तन को भी यहीं छोड़कर जाना है ।
जिस पर तुमने लगाया है अपना,
यह जात-पात,मजहब-धर्म का मुहर प्राणी।
ऊपर वाला तो बस तेरे आत्मा को ले जाएगा,
उसकी शुद्धता को जाँचेगा और अपने साथ ले जाएगा।
छलकपट करके तुम इसका बोझ न बढा प्राणी,
नही तो तेरा आत्मा भी यही भटकता रह जाएगा,
फिर कहाँ उसे मुक्ति मिल पाएगा प्राणी।