किस नाम से पुकारूँ
मैं तुझें जिस नाम से पुकारूँ,
तुझ से एक मुक़्मल जहां है,
बहते झरनें का साज़ हो तुम,
समुंदर की लहरों का संगीत तुम,
मैं तुम्हें जिस नाम से पुकारूँ,
पंछी का है परवाज़ तुझीं से,
उन्हीं की मधुर वाणी हो तुम,
मैं तुम्हें जिस नाम से पुकारूँ,
रंगत है तुझ ही से फ़िज़ा की,
फूलों की ख़ुशबू महक तो तुम,
मैं तुम्हें जिस नाम से पुकारूँ,
पूर्ण हो ज़िन्दगी ख़्वाहिशें तुम से,
हर रंगों से तुझ ही कि पहचान है,
मैं तुझें जिस नाम से पुकारूँ,
तुझ से एक मुक़म्मल जहां हैं।।
मुकेश पाटोदिया’सुर”