किस दुनिया में खोजूँ तुमको
किस दुनिया में खोजूँ तुमको, आभासी संसार बड़ा।
किस सागर की परिधि नापूँ,सागर का आकार बड़ा।।
मेरे मन में बिखरी थी जो, अब तक छूटी गंध नहीं।
प्रेम वही होता है जिसमें, शर्तों का अनुबंध नहीं ।।
खोज रहा हूँ तुमको कब से, सूने पथ चौराहों पर ।
डूब रहे माझी को मिलता, तिनके का आधार बड़ा।।
आशाओं के दीप सजे हैं , अम्बर में जगमग तारे।
जैसे अवसादों में गिरते, अँखियों से आँसू खारे।।
रुत आयी रुत चली गई है, आस लिए बैठा चातक ।
आशाओं की मरुभूमि में, यादों का बाज़ार बड़ा।।
आँख लुभाता सावन-भादौं, ऐसे ही आभासी कल ।
खिल जाती है धूप सुनहरी, खो जाते काले बादल।
लाया हूँ कुछ शब्द अधूरे, गीतों की मंजूषा से ।
कितने भावों में रच डालूँ , भावों का अम्बार बड़ा।।
प्रस्तुत गीत में नायक नायिका काल्पनिक हैं, वियोग शृङ्गार में रचित गीत है।
जगदीश शर्मा सहज