किस दिल की दीवार पे…
किस दिल की दीवार पे…
लोग
सिर्फ साँसों तक ही साथ देते हैं
साँसों के बाद
जिस्म ही जला देते हैं
चंद दिनों तक ही जलते हैं
यादों के दीप
फिर इक तस्वीर
दीवार पर लगा देते हैं
हाँ
मेरे शब्द भी शायद
यूँ ही खो जायेंगे
न जाने
ये कब किस का स्पर्श पायेंगे
कौन देगा इन्हें
अपनी पलकों पर जगह
किस ख़्वाब के वर्क में ये पढ़े जायेंगे
हर जिस्म की तरह
इनका भी जिस्म होता है
हर जिस्म की तरह
ये भी फ़ना हो जायेंगे
फ़र्क ये है कि
जिस्म ख़ाक में मिल जाते हैं
ये बदनसीब
टुकड़ों की शक्ल में बदल जायेंगे
बीते ज़माने सा कभी
इनका वजूद हो जाएगा
किसी अलमारी में
ये भी सजा दिए जाएँगे
जब कभी
इन टुकड़ों पर
किसी का दिल आएगा
जी उठेंगे
फ़ना होकर भी
जब ये पढ़े जाएँगे
गुजरों को याद करे
किसके पास ये फुर्सत है
जाने किस दिल की दीवार पर
ये जगह पायेंगे
सुशील सरना/