किस दिन मैं छिपा करता हूँ
करोड़ बारह सौ फूंके हैं ,बांटे मोबाइल सरकार
गंवार-अपढ़ जनता होवे,मोबाइल की क्या दरकार
जिन गावो में भूखा प्यासा,खेती करता दिखे किसान
मोबाइल उन हाथो देकर,तुम समझो खुद धन्य महान
नक्सलवादी वहीँ जमे हैं ,ले पैसा इस नाम अकूत
रोजाना ताबूत भेजे जाते ,भारत वीर जवान सपूत
किस मिटटी के तुम हो माधो ,ह्रदय तुम्हारा हाय कठोर
विपदा- संकट रखते साथी ,नेता- अफसर चिन्दी चोर
कौन योजना के बलबूते ,होगी अब की नैय्या पार
जनता और भरम में डालो ,कर लो फिर से छल व्यापार
विकास मुद्दे चुनाव गायब , कहो राज के तारणहार
मोबाइल दे के लूट रहे , सरकारी संचित भंडार
पढ़ने वाले बच्चो को देकर ,करते यहां गहन अपराध
भटकाने-दौड़ाने पथ में ,छोड़ दिए हो क्रोधित बाघ
जनमत को अब मत भटकाओ,देना होगा सभी हिसाब
बन्द करो ये दारू खाने, मुफ्त बांट चुनावी शराब
सुशील यादव दुर्ग
धुआं धुआं है शहर में हवा नहीं है
मैं जो बीमार हूं मेरी दवा नहीं है
तलाश उस शख्स की है अभी जारी
जिसके पांव में छाले छाले जो थका नहीं है
कहां तक लादकर हम बोझ को चले
बनके श्रवण मां-बाप को पूजा नहीं है
दंगो के शहर दहशत लिए जीता हूं मैं
कोई हादसा करीब से छुआ नहीं है
लहरो से मिटी है रेतों की इबारत
सीने से मिटे नाम जो लिखा नहीं है
मैं सपनों का ताना-बाना यूँ अकेले बुना करता हूं
मंदिर का करता सजदा मस्जिद भी पूजा करता हूं
जिस दिन मिलती फुर्सत मुझको दुनिया के कोलाहल से
राम रहीम की बस्ती , अलगू जुम्मन ढूंढा करता हूं
जब-जब बादल और धुएं में गंध बारूदी मिल जाती है
उस दिन घर आंगन छुपके पहरों पहरों रोया करता हू
मजहब धर्म के रखवाले इतने गहरे उतर न पाते
मैं सुलह की गहराई से मोती सांफ चुना करता हूं
आओ हम अपना उतारे ,ओढा पहना बेसबब नकाब
मेरी शक्ल से वाकिफ तुम,मैं किस दिन छुपा करता हूँ
सुशील यादव
न्यू आदेश नगर दुर्ग छत्तीसगढ़