किस काम का ये मारा हुआ जिस्म
किस काम का ये मारा हुआ जिस्म
हारी हुई रूह और हारा हुआ जिस्म
फितरतन इंसान ने ख़ुद मैला किया
आसमां से पाक उतारा हुआ जिस्म
मौत की आगोश मे ढह ही गया देखो
बड़े बड़े दर्दों गम सहारा हुआ जिस्म
बुढ़ापे मे तकलीफों से गुजरता देखा
कोठो पर रातें गुजारा हुआ जिस्म
रूह जुदा हुई तो देखती रही”आलम”
हाथ पैर अपने पसारा हुआ जिस्म
मारूफ आलम