किस ओर
किस ओर जाये हम, सूरजमुखी सम संदेश देते हम,
या खुद को छुईमुई समझे हम, एक तर्जनी से मुरझाए हम.
चट्टान पर्वतों की उठे ज्वार मखमल सी सौगात हम,
उठे गगनचुंबी लेकर सप्तरंगी इंद्रधनुषी क्षितिज हम.
बने तूफान पैर जमीं पर छू ले आकाश हवा केवल नहीं हम.
कड़कती बिजली मेध सी गर्जन बिन बरसात रह गये हम.
धरा से उठते वाष्प बनकर छाप कुहरा छाप इंसान हम.
कहीं पर समर्थन विरोध कहीं पर सजीव प्राणी हम.
पानी में जलचर, तल पर तुला, आकाश में पंथी, सब पर हम.
हठ कैसी कौन राजयोग, धरा फटे आई सुनामी वामें लीन,
जरा से उद्भव जटायु स्तन विलुप्त अण्डज, बन जीये कीट हम.