किस ओर चला इंसान
देखो किस ओर चला इंसान
अपनों को छोड़ हो गया अनजान
ना वो खुशियां ना वो अरमान
सब देते यहां अपना अपना ज्ञान
कहां गए वो घर जो बन गए अब मकान
ना बच्चों की किलकारियां, ना वो खेत खलिहान
देखो किस ओर चला इंसान
अपनों को छोड़ हो गया अनजान
जी रहे हम ऐसे युग में जहां हर चीज हो गई आसान
रिश्ते वैसे नहीं रहे दिल हो गए वीरान
छा गई हैवानियत इंसान बना शैतान
ना प्यार ना बलिदान कहां गए वो लोग महान
देखो किस ओर चला इंसान
अपनों को छोड़ हो गया अनजान