किस्सा–द्रौपदी स्वंयवर अनुक्रंमाक–09(दौड़)
किस्सा–द्रौपदी स्वंयवर
अनुक्रंमाक–09(दौड़)
दौड़–
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी तुम करो दया,
हाथ जोड़ स्तुति करता धरता ध्यान चरण के म्हा,
मेहर करो मत देर करो संकट के मां करो सहा,
चरण शरण का लिया सहारा सब व्याधी नै परै हटा,
शिव शंकर कैलाश पति सर्व दुख भंजन हो त्रिपुरारी,
देते वर सदा मुक्ति का वाराणसी मै मदनारी,
श्री जटा मै गंग विराजै जगतारण वर अघ हारी,
कर डमरू त्रिशुल विराजै गळ मुंडन माळा न्यारी,
वामै अंग गिरीजा सोहे नादेश्वर की असवारी,
उमा सहित मिल कृपा किजो हामनै शरण ली थारी,
कैलाशी काशी के वासी अविनासी मेरी सुध लीजो,
करो पूर्ण आस हो त्रास नाश मुझे दास जान दर्शन दीजो,
तूंही संचालक चालक पालक बालक पर कॄपा कीजो,
तन मन धन सब कुछ है अर्पण प्रसन्न हो मुझ पर रीझो,
एक समय की कहैं हकीकत सुणते जाइयो ध्यान लगा,
करण तपस्या अर्जुन चाल्या देख बियाबान जंगल के म्हां,
लगा समाधी काया साधी व्याधी लीन्ही परै हटा,
लाकै आसन बैठ गया था राम नाम गुण गाया,
शिवशंकर और पार्वती चलकर दोनूं आया,
शिवजी बोल्या पार्वती से ऐसा वचन सुणाया,
देख महात्मा यो बैठ्या सै कानी देखो करो निंगाह,
द्वापर मै इसके जोड़े का मर्द दूसरा दीखै ना,
पार्वती सुण हासण लागी मुख आगै लिया पल्ला ला,
क्यांकै लायक यो साधू बाधू बात करै मतना,
करामात शक्ति सै तो बालम मुझको दिए दिखा,
माया से जब काया पलटी दोनूं काम करैं थे क्या,
पार्वती जब मृग बणकैं छाल मारकैं जब चाली ध्या,
शिवशंकर जब बण्या पारधी धनुष बाण लिया कर मै ठा,
अर्जुन कै आगै कै लिकङ्या जब अर्जुन नै करी निगांह,
रीस मै भरकैं अर्जुन बोल्या शिवशंकर नै तब धमका,
अरै नीच लई आँख मीच आश्रम बीच करता है क्या,
अरे व्याधी सुण अपराधी क्युं साधी घात जीव पै आ,
शिवजी बोल्या कद पाछै तूं आग्या नै रुखाळा,
आज तनै मारुंगा भाई तेरी जान का गाळा,
बढ़ते-२ बात बिगड़गी मंडग्या था जब पाळा,
दोनूं जणे लड़न लागे धनुष बाण लिया कर मै ठा,
अर्जुन बाण चलावै शिवजी रस्ते मै दे काट गिरा,
धनुष विद्या सारी अर्जुन की पल मै निष्फल दई बणा,
धनुष बाण तो गेर दिया फेर ले ली हाथ कटारी,
बियाबान जंगल कै अन्दर युद्ध मच्या बड़ा भारी,
अर्जुन तो हार गया वो जीत गया त्रिपुरारी,
फेर कटारी गेर दई थी आपस मै लिए हाथ मिला,
जब दोनुओं की कोळी पड़गी एक दूसरै नै रहे गिरा,
लड़ते भिड़ते पड़ते छड़ते धरणी बे-परवाह,
मल कुश्ती का युद्ध जुध सुध बुध सब दई भुला,
लड़ते लड़ते शिवशंकर नै देखो काम करया था क्या,
अर्जुन को जब नीचै पटक्या कई देर तो युद्ध मै अटक्या,शिवशंकर क्या करता लटका,
तेगा कर मै लिया उठा,अर्जुन की जब नाड़ दबा कै तेगा उपर दिया टिका,
शिवजी बोल्या अर्जुन से तीन बार तुम कह दयो या,हार लिया,हार लिया,हार लिया की भर दयो हाँ,
मरने मै कोय कसर नहीं थी धरी नाड़ पै ग्यासी,
तळै पड़े अर्जुन नै फेर आ गई थी हाँसी,
अरै पारधी के मारगै क्युं करता बदमासी,
अनसुइया परणाई थी एक ऋषि हो गया अत्री,
ब्रह्म हत्या लागै कोन्या जो जाणै गायत्री,
हांरु कोन्या जीतुंगा आखिर सूं मै क्षत्री,
मै क्षत्री तूं फिरै पारधी जीव मारता वन के म्हां,
हांरु कोनी जीतुंगा तळ्या पड़या भी कह सुणा,
अर्जुन की जब बात सुणी थी शिवशंकर नै गई हाँसी आ,
शिवशंकर जब राजी होग्या फुल्या दिल मै नहीं समा,
माँग माँग वरदान माँग ले क्युं राखी सै देर लगा,
अर्जुन बोल्या के ले रह्या सै तेरै पास कुछ दिखै ना,
करामात कोई शक्ति सै तो दे नै असली रूप दिखा,
शिवशंकर अर्जुन ऊपर करी थी दाया देखो,
शिवजी नै अपणा रुप धार कैं दिखाया देखो,
देखकैं नै रंग ढंग बोल्या कुंती जाया देखो,
तृतीय नेत्र दे दो थारा कर दो मन का चाहया देखो,
अर्जुन की बात सुणी थी कहण लगे त्रिपुरारी,
रै अर्जुन तनै यो के मांग्या कोन्या बात विचारी,
नहीं दिया जा नाट्या जा ना मुश्किल होगी भारी,
ब्रह्मा जी तो रचना रचता,विष्णु पाळै प्रीति ला,
प्रलय का संहार करूं जब प्रकट हो मस्तक के म्हां,
शिवशंकर नै हाँ भरली थी सुणते जाईयो ध्यान लगा,
वक्त पड़े पै याद करैगा यो नेत्र दुंगा पहुंचा,
तेरा काम काढ़कैं मेरा मेरै धोरै जा गा आ,
उस दिन वचन भरे शिवजी नै बात याद आगी वा,
अर्जुन जब स्तुति करता बार बार रह्या टेर,
जल्दी करकैं नेत्र भेजो मतन्या लगाओ देर,
आज जरूरत है मनै काम के आवैगा फेर,
शिवशंकर नै दास जाण अर्जुन पै करी मेहर,
शिवशंकर नै नेत्र भेज्या गुद्दी मै होया प्रकट,
अर्जुन को मालम पाटी बाण को उठाया झट,
क्रोध मै भरया था बली दाँत पीसै चटाचट,
अपने-२ सिंहासन से राजा लोग नीचै पड़े लटालट,
धनुष ऊपर भाल जब देवण लाग्या खटाखट,
चाल कै नै भाल वा मीन कै गई निकट,
टूट कै नै मछली नीचै होती आई लटपट।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)