किस्सा–चन्द्रहास अनुक्रम–21
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चन्द्रहास
Vol–21
टेक-दर्द ऐ दिल नैं सेकण दयो हे,जीजा का मुख देखण दयो हे,चाह हो सै छोटी साळी नैं।
१-प्रेम विवश बंधन मैं फंस मरै पतंग चिराग मैं जळके हे,
रुप अनूप धूप सम दमकै ज्यूं होळी के झळके हे,
पळके पड़ैं कटारी मैं,कई बैठी चढ़ी अटारी मैं,
रही खोल झरोखी जाळी नैं।
२-सितम करे प्रमेश्वर नैं सूरत मूरत अजब घड़ी,
जरकस जामा अंग विराजै गळ मैं मोतीयन की माल पड़ी,
खड़ी नंनद और भोजाई,थी धन धन उसकी चतुराई,
सेहरा गुथ्या जिस माळी नैं।
३-कई दूर तैं रही घूर कई निरखैं नूर बदन का हे,
जुर सा चढ़ण लाग्या बढ़ण जोश मदन का हे,
गई भूल सदन का धंधा हे,किया इंदु भी शर्मिंदा हे,
ईस सूरत भोळी भाळी नैं।
४-मुरगाई ज्युं तिरती थी कई छम छम करती डोलैं थी,
मृग नयनी पिक बैनी पैनी धार मार कैं छोलैं थी,
बोलैं थी हो कैं राजी,जणु बीण सपेले की बाजी,
फण ठा लिया नागण काळी नैं।
५-केशोराम नाम की रटना गुरु चरण की शरण लई,
कुंदनलाल नंदलाल हाल कहैं तर्ज सुणावैं नई नई,
कई प्रेम फंद मैं फहरी थी,कई कई न्यूं कह री थी,
चालांगी पात्थरआळी नैं।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)