किस्सा–चंद्रह्रास अनुक्रम–2 किस्सा–चंद्रह्रास अनुक्रम–2
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रह्रास
अनुक्रम–2
वार्ता– चंद्रह्रास के जन्म के ३ दिन बाद दुश्मन राज्य पर हमला कर देते हैं और लड़ते लड़ते राजा वीरगती को प्राप्त हो जाते हैं, उधर पति की मौत के बाद रानी सती हो जाती है, उस लड़के का पालन पोषण धाय माता करती है, दुश्मन राजा के पुन: आक्रमण के डर से वो उस लड़के को वहां से कहीं दूर ले जाती है और उसको देखकर मन हि मन कहती है…
दोहा:::: केरल देश कै बीच मैं हुए सुधार्मिक महाराज,सतवादी राजा हुए करै थे धर्म के काज,करैं थे धर्म के काज भूप कै पुत्र चंद्रह्रास हुए,शत्रुओं ने राजा कै उपर आकै करी चढ़ाई थी,बड़ा जोर का युद्ध हुआ समर मै हुई लड़ाई थी,रण मै राजा मारे गए या कुदरत थी भगवान की,राणी गैल्यां सती होगी लगागी बाजी जान की।।
टेक– छूटग्या आराम बेटा घर के तमाम बेटा मारे गए रण मै।
१- के सुख देख्या तेरे पिता नै जाम्या कुँवर बुढ़ापे मै,
जामण आली माता बेटा ना खावण पाई जापे मै,
बंद लिफाफे मैं पत्री सै भँवर बीच जल कत्री सै डूब ज्यागी छन मै।
२- बदी करे बदनामी मिलती नेक चलण से नेकी रे,
मिट सकते ना अंक भाल के जो कलम विधि नै टेकी रे,
केकी कूक कुकाके बेटा दामिनी पलाके बेटा दे रही घन मै।
३- टुकड़े के मोहताज आज दिन असरत के बीते रे,
क्युं इतने कष्ट झेलणे पड़ते जै पितु मात तेरे जीते रे,
चीते शेर बघेरे बेटा बिच्छु सर्प गुहेरे बेटा घूम रहे वन मै।
४- नौ दस मास गर्भ के अंदर पटरानी के लोट्या रे,
नंदलाल कहै उस राजकुंवर नै कितना दुखड़ा ओट्या रे,
के मोटा किया पाप बेटा बालक के माँ बाप बेटा गए छोड़ बचपन मै।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)