किस्सा–चंद्रह्रास अनुक्रम–1–पुत्र जन्मा बटी बधाई
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा– चंद्रह्रास
अनुक्रम–1
वार्ता– कुरूक्षेत्र युद्ध के पश्चात पांडवों ने एक अश्वमेध यज्ञ किया था और एक घोड़ा छोड़ा था। जो भी उस घोड़े को पकड़ता तो उसको पांडवो के साथ युद्ध करना पड़ता। बहुत दिन हो गए लेकिन घोड़ा नहीं आया और न ही घोड़े का पता चला तो एक दिन नारद मुनी जी भ्रमण करते हुए मृतलोक में आ गए। पांडव उनसे पुछने लगे कि महाराज आप तीनों लोकों का भ्रमण करते हो क्या आप बता सकते हैं कि घोड़ा कहाँ है। तब नारद जी बोले कि वह घोड़ा तो केरल राज्य के राजा सुधार्मिक के पुत्र चंद्रह्रास के लड़कों ने बाँध रखा है। गुस्से में आकर पांडव कहने लगे कि ऐसा कौन बलशाली है जिसने घोड़ा बाँध लिया, तब नारद जी बोले आपका इतना घमंड करना ठीक नहीं है, तो अर्जुन बोले महाराज उसके बारे में कुछ बतायें। नारद जी कहानी बताते हैं……
नारद जी कथा सुनाते हैं……
राजा सुधार्मिक को कोई संतान नहीं थी,राजा चौथे पन में आ गए थे, तो उसने सभी ब्राह्मणों को बुलाया और कहा मुझे इसका कोई उपाय बताओ,फिर ब्राह्मण बोले कि आप पुत्रेष्टी यज्ञ कीजिए,इसके पश्चात राजा को लड़का होता है, चारों ओर खुशी का माहौल…..
टेक–पुत्र जन्मा बटी बधाई,बाटण लागे चाव मिठाई,गावण लागी गीत लुगाई,खुशी हुई महिपाल के।
१- शुभ गुण शुभ लक्षण कामण मैं,उमीदी हुई कँवर जामण मैं,ज्युं सामण मैं उठ हिलोर रहे,घन मैं धू से घूर रहे,शब्द गगन मैं पूर रहे,घंटे और घड़ियाल के।
२- हो रहे मन मै मग्न महिप,बुला लिए ब्राह्मण देव समीप,धूप दीप न्यारी धर राखी,सामग्री सारी धर राखी,स्वर्ण की झारी धर राखी,दूब दही मैं घाल के।
३- अली लवलीन मकरन्द बीच,छूटगे जो कैदी थे बंद बीच,नृप आनंद बीच पाग रहे थे,पड़ी बत्ती तोप दाग रहे थे,नग मोती लाल लाग रहे थे,लगे पलके बंदरवाल के।
४- केशोराम ग्राहक गुण के,कुंदनलाल छंद कथैं चुन के,धुन सुन के गंधर्व लाज रहे,जो सुरपुर बीच विराज रहे,लख साज आनंदी बाज रहे,प्रचार हुए नंदलाल के।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)