किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–7
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–7
टेक- धुरी टिकाणी टूट गई यो पड़्या लीक मै ठेला रहग्या,
याणे के माँ बाप मरे मैं निर्भाग अकेला रहग्या।
१-ना किसे ठोड़ मरण पाया मैं,ना कुछ जिकर करण पाया मैं,
कोन्या घूंट भरण पाया मैं,यो भरया दूध का बेला रहग्या।
२-परमेश्वर नै मेहर करी थी,या मूर्ति पाई ना देर करी थी,
मनै होकैं खुशी बखेर करी थी,यो पड़या धूळ मै धेला रहग्या।
३-होणहार मनै लूट गई रै,कर सै या डोरी छूट गई रै,
मेरी बीण बाजती फूट गई रै,यो खाली हाथ सपेला रहग्या।
४-जी जा रह्या सै सो सो घाटी,गात मै तो छाई घणी उचाटी,
ना हाळी नै मालम पाटी,यो खुडाँ बीच पछेला रहग्या।
५-कुंदनलाल शुद्ध भाव देखते,कलयुग का बर्ताव देखते,
सब अपना अपना दाँव देखते,जिसा गुरु उसा चेला रहग्या।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)