किस्सा कुरसी का व्यंग्य
हाँ भाईसाब
मैं कुरसी बेचता हूँ
ये चार ही बची हैं
एक , एक पैर की
ये दो , तीन
और ये चार पैर की
भाईसाब
एक पैर वाली
मंहगी है सबसे
मामला किस्सा
कुरसी का है
एक पैर के साथ
तीन उठाने वाले
मजबूत कंधे वाले
एक कमजोर तो
हुए धडाम से
गठबंधन है भाईसाब
आप तो समझदार हैं
कुरसी मजबूती की
कोई गारंटी नहीँ
किस्मत आपकी
जितनी चले
पर दाम कम नहीँ
एक पैसा भी नहीँ
तीन लोगों का
दाम भी लूंगा
खैर भाईसाब
देख लो
जो फिर
आपकी पसंद
मुझे चारों
बैचना है
जरूरत आपकी
दाम मेरे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव