किस्सा अधुरा रहेगा
अभी तो नज़र को नज़र ने पढ़ा है, अभी तो समझने का इक दौर होगा
झटक के करेंगे अलग मुझको खुद से, अभी तो उलझने का इक दौर होगा
खुलेंगे दरीचे, हवा भी चलेगी, ये उन तक आहिस्ता से पहुंचेगी इक दिन
भड़केंगी चिंगारियां भी किसी दिन, अभी तो सुलगने का इक दौर होगा
पियेंगे किसी दिन तो आंखों से उनकी, वो कब तक निगाहें चुरा कर रहेंगे
मगर ये तो बातें हैं पीने के दिन की, अभी तो छलकने का इक दौर होगा
जो मिल जाये मंज़िल अगर सीधे सीधे, मज़ा क्या रहेगा फिर अपने सफर में
जो मंज़िल मिलेगी तो देखेंगे तब ही, अभी तो भटकने का इक दौर होगा
ये मैं जानता हूँ कि आदत है उनकी, वो सौ सौ कहेंगे मगर न सुनेंगे
वो मुझको कुबुलेंगे इक दिन तो जाकर, अभी तो परखने का इक दौर होगा
ये लगता है किस्सा अधूरा रहेगा, अधूरी रहेगी दिलों की कहानी
मगर ये ख़तम भी नहीं होगा ऐसे, अभी तो तड़पने का इक दौर होगा