किस्मत की लकीरें
भाग्य इन्सान को कहां से कहां ले आता हैं, यह सोहन चचा से पूछना चाहिए। सोहन चचा जो मेरी कहानी का नायक है। सोहन चाचा का ताल्लुक़ बिहार के पटना नामक स्थान से रहा। बचपन में गरीबी इतनी ज्यादा थी कि अगर कुरता खरीदता था तो पायजाम खरीदने के लिए पैसा नहीं होता था। देश अभी अभी आज़ाद हुआ था। भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक भुखमरी, बीमारी और अशिक्षा प्रमुख थी।
सोहन चचा की उम्र करीब पैंतीस – चालीस के बीच रही होगी जब देश में बंटवारे और हिंदू मुस्लिम की हिंसा होना शुरू हो गई थी। सोहन चचा के घर में उनके बूढ़े माता पिता कमला देइ और तोता राम के अतिरिक्त सोहन चचा उसकी पत्नी भाग्यमति और पांच बेटियां सीता, गीता, स्वीटी, मीता और रीटा और दो बेटे मोहन और राम थे। कुल 11 जन का परिवार था।
जब कभी जनसंख्या नियंत्रण वाले उनके घर आते और जनसंख्या नियंत्रण के बारे में सोहन चचा को समझाते तो उनका एक ही कथन होता था – “देखो बबुआ, बचवा तो मालिक की देन है है अउर जिसने हथवा दिया है न वो कमवा भी दियो है।”
समय बीतता गया किंतु सोहन चचा को जिस किस्मत के खुलने की उम्मीद थी शायद वह भी धूमिल होती जा रही थी। सोहन चचा की उम्र का ग्राफ भी 55 – 60 के बीच जा चुका था। 11 जन में से बूढ़े माता पिता जिंदगी की जंग हार चुके थे। 11 जन में से दो गोलोकवासी हो गए थे। अब नौ ही शेष बचे थे। पांचों बेटियां शादी लायक हो गई थी। सोहन चचा की चाय की दूकान भी मुनाफा नहीं से रही थी।
दोनों बेटे बड़े हो गए थे। बेटियों की शादी की बात चलती किंतु दहेज में मोटर गाड़ी न दे पाने के कारण बात नहीं बन पाती।बेटियां इंटर तक ही पढ़ी थी और साथ में सिलाई कढ़ाई सीख कर मां भाग्यमती के काम में हाथ बंटाती थीं।
बेटे मोहन और राम भी एम ए की पढ़ाई तक पढ़े थे और पटना में ही सोहन चचा की दूकान पर ही उनके काम में हाथ बंटाते थे। समय और बलवान होता गया। सोहन चचा बूढ़ा हो गया और बच्चे जवानी की दहलीज को पार करने के कगार पर थे। किंतु सोहन चचा को एक ही चिंता सता रही थी कि उसके बाद बच्चों का क्या होगा? शादी ब्याह कब होंगे।
एक दिन की बात भरी दोपहरिया में सेठ बांकेलाल मुंबई से पटना आते हैं। सेठ बांकेलाल का सपना था कि बिहार में एक ऐसा शॉपिंग हब बनाया जाए जिससे कारखाना और शॉपिंग मॉल एक जगह ही हो जाएं।
ऐसे समय में सेठ को ईमानदार,कर्मठ, पढ़े लिखे और सबसे बड़ी बात भरोसेमंद लोगों की टीम की जरूरत थी ।
समय की गति और आगे बढ़ी। सेठ बांकेलाल ने सोहन चचा की सहायता से कारखाना और शॉपिंग मॉल खोल दिया और बिजनेस में अच्छा खासा प्रॉफिट भी होने लगा। सोहन चचा और उसके बच्चे भी अच्छे से कमाना शुरू कर दिए। परिवार के दुख दूर होना शुरू हो गए। और इस प्रकार क़िस्मत की लकीरों ने खुशहाली के रंग भरना शुरू कर दिए
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश