किस्मत की निठुराई….
किस्मत की निठुराई…
पलभर पाया साथ खुशी का,
अब लम्बी तन्हाई।
हँसता मुखड़ा नहीं सुहाया,
किस्मत की निठुराई।
बाहर शांत मगर मन – भीतर,
चलती थी फेंटेसी।
छाया बढ़कर मुझ तक आयी
लगी तुम्हारी जैसी।
चित्रलिखित-सी तकती उसे मैं,
लाज भरी सकुचाई।
नन्ही खुशी भी टिक न पाती,
साये गम के बढ़ते।
नसीब ठूँठ-सा पाकर, ख्वाब,
कल्पद्रुम के गढ़ते।
कलम विरंचि की आज हमसे,
आँख मिला शरमाई।
नियति-शकुनि ने फेंके पासे,
खेले खेल कपट के।
पटकी देकर खूब छकाया,
देखा नहीं पलट के।
भर-भर अंधड़ चले गमों के,
आस-कली मुरझाई।
हर ऋतु हर मौसम से हमने,
दुखड़ा अपना रोया।
अपने ही अश्कों से फिर-फिर,
मुखड़ा अपना धोया।
किस्मत के मारों की जग में,
होती कब सुनवाई।
पलभर पाया साथ खुशी का,
अब लम्बी तन्हाई…..
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )
“शब्द-सागर” से