किसे ढूढ़ते है भीड़ में
खो गए श्रवण
इस भीड़ में कहीं,
सो चुके हैं सैय्या पर
भीष्म भी यहीं..!
अब नही बचे है राम
ना लक्ष्मण बचे कहीं
सिर पर रखे जो पादुका
ऐसे भरत मिलते नही कहीं ।
ना बची है सीता
ना राम हैं कहीं
जो समझाए पति को,
वो अब मन्दोदरी नही..!
बेटा देखता है बाप में,
अपना दुश्मन हर कहीं
जो जिला दे बेटे को अपनी रूह से
पिता बादशाह बाबर भी नही बचा कहीं..!
तर्पण के लिए तड़फते,
पूर्वज प्यासे पड़े हैं हर कहीं
स्वर्ग से खींच लाये गंगा जो
वो भगीरथ भी नही कहीं..!!