किसी ग़रीब को आओ हँसा के देखते हैं
——-ग़ज़ल——
तुम्हारे दर पे किसी रोज़ आ के देख ते हैं
नसीब अपना ये हम आज़मा के देख ते हैं
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तुम्हारे शहर की कितनी हवाएँ हैं क़ातिल
मगर घर अपना वहीं पर बना के देख ते हैं
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वतन में आग लगी है जो इक तन्फ़्फ़ुर की
चलो तो प्यार का दीपक जला के देख ते हैं
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ख़ुदा हमेशा नज़र रखता उन पे रहमत की
ग़मों में ख़ुद को जो धीरज बँधा के देख ते हैं
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वतन में चैन का माहौल बन सके शायद
किसी ग़रीब को आओ हँसा के देख ते हैं
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सिखाया माँ ने नहीं हमको नफ़रतें करना
किसी को देखें भी तो मुस्कुरा के देख ते हैं
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सुना है ज़ुल्फ़ तले मिलता चैन तो प्रीतम
किसी की ज़ुल्फ़ के साये में जा के देख ते हैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)